राष्ट्र मे चरित्र की लौ को जलाये हुए हैं मनीषीसंत: रणवीर सिंह गंगवा
राष्ट्र मे चरित्र की लौ को जलाये हुए हैं मनीषीसंत: रणवीर सिंह गंगवा
हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष रणवीर सिंह गंगवा ने आज मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक से आर्शीवाद प्राप्त किया उनके साथ आर.एस वर्मा आई.ए.एस और पूर्व चेयरमैन सतपाल भी मौजूद भी थे। श्री गंगवा ने कहा मनीषीसंत का आर्शीवाद सदा मेेरे ऊपर रहा है।
अच्छा बोलने और अच्छी बातें करने से कोई महान नहीं बनता:
मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक
चंडीगढ़, 24 मई केवल अच्छा बोलने से, अच्छी बातें करने से, अच्छी सोच रखने से, अच्छे कपड़े पहनने से, अच्छे घर में रहने से या फिर सभी अच्छी सुविधाओं को काम में लेने से महान नहीं बना जा सकता है। हर कोई मानव जीवन को अनमोल मानता है और यह अच्छे से जानता भी है कि मानव जैसा जीवन दूसरा कोई इस सृष्टि में नहीं है। फिर इसे महान बनाना तो मनुष्य का प्रथम दायित्व है लेकिन यह अलग बात है कि वह इसे बहुत नीचे तक ले जाकर भी अच्छा बनना चाहता है। हर व्यक्ति की यह अजीज इच्छा होती है कि वह और ऊपर उठे, उन्नति करे, सफलताएं हासिल करे और सबसे महान बने। लेकिन आज यह यक्ष प्रश्न सीधा खड़ा दिखाई दे रहा है कि कितने लोग हैं इस दुनिया में जो महान बने हैं या फिर महान बन रहे हैं। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24सी अणुव्रत भवन मे रविवारिय सभा को संबोधित करते हुए कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा जब इसके मूल में जाया जाता है तो निष्कर्ष निकलकर आता है कि केवल अच्छा बोलने से, अच्छी बातें करने से, अच्छी सोच रखने से, अच्छे कपड़े पहनने से, अच्छे घर में रहने से या फिर सभी अच्छी सुविधाओं को काम में लेने से महान नहीं बना जा सकता है।महान और सार्थक जीवन के लिए तो इन सब चीजों के साथ-साथ अच्छे कर्म करने पड़ते हैं, खूब मेहनत करनी पड़ती है, सर्वहित की भावना रखनी पड़ती है, दूसरों के लिए काम करना पड़ता है, त्याग करना पड़ता है। पहले भी जिंदगी आसान नहीं थीं। सुविधाएं कम थीं, संघर्ष कहीं अधिक था। उसके बाद भी क्या कारण था कि हमारी सेहत, जिंदगी में अवसाद, तनाव कम था. यह तो कुछ ऐसा है कि दवा नहीं थी तो दर्द भी नहीं था। दवा घर में आते ही हम बीमार पड़ गए. हमें बुजुर्गों से समझने, सीखने की जरूरत है कि कैसे वह अपने मुश्किल वक्त का सामना करते थे. कैसे वह कोई निर्णय तब करते थे, जब कोई रास्ता नहीं दिखता था. कैसे वह तनाव, रिश्तों की जटिलता से निपटते थे। कैसे कम बजट में हमारी जरूरतें पूरी होती थीं. कैसे वह इच्छा, जरूरत और लालच के अंतर को समझते थे। यह सब हमारे पुरूषार्थ पर निर्भर करता है।